योजनाओं का सही क्रियान्वयन ही सामाजिक न्याय और पंथनिरपेक्षता
नई दिल्ली।
सामाजिक न्याय का मतलब कुछ जातियों का उत्थान और पंथनिरपेक्षता का अर्थ अल्पसंख्यक तुष्टीकरण के घिसे-पिटे ढर्रे के विपरीत केंद्र सरकार ने इसे विकास के संदर्भ में अलग अर्थ में प्रस्तुत किया है। जातिगत जनगणना की विपक्षी दलों की मांग का प्रधानमंत्री यह कहकर पहले ही जवाब दे चुके हैं कि उनके लिए केवल चार जातियां- गरीब, किसान, महिला और युवा हैं
इसी सोच को आगे बढ़ाते हुए वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने अपने अंतरिम बजट भाषण में सामाजिक न्याय और पंथनिरपेक्षता का सरकार के लिए असली मतलब भी समझाया।सीतारमण ने कहा कि पहले सामाजिक न्याय मुख्य तौर पर एक राजनीतिक नारा था, लेकिन मोदी सरकार के लिए सामाजिक न्याय एक प्रभावी और आवश्यक शासन पद्धति है
वित्त मंत्री का इशारा उन दलों, खासकर क्षेत्रीय दलों की ओर था, जो पिछले तीन-चार दशक से सामाजिक न्याय को अनुसूचित जातियों-जनजातियों और अन्य पिछड़ा वर्ग के उत्थान के अपने वोट बैंक वाले एजेंडे तक सीमित रखे हुए हैं। सीतारमण ने कहा कि सभी पात्र लोगों को शत-प्रतिशत लाभान्वित करने का दृष्टिकोण ही सच्चे और स्पष्ट अर्थों में सामाजिक न्याय की प्राप्ति है
कार्य रूप में यही पंथनिरपेक्षता है, जिससे भ्रष्टाचार कम होता है और भाई-भतीजावाद पर लगाम लगती है। वित्त मंत्री ने सरकार के इस दृष्टिकोण के साथ भावी चुनावों के लिए मैदान भी सजाने की कोशिश की। उन्होंने प्रधानमंत्री द्वारा गिनाई गईं चार जातियों- गरीबों, महिलाओं, युवाओं और किसानों की आवश्यकताओं, आकांक्षाओं और उनके कल्याण को मोदी सरकार की सर्वोच्च प्राथमिकता बताया।
जनकल्याण के लिए पारदर्शी शासन और निष्पक्षता पर जोर देते हुए वित्त मंत्री ने यह भी कहा कि सामाजिक न्याय और पंथनिरपेक्षता के प्रति सरकार की इस सोच ने ही यह सुनिश्चित किया है कि योजनाओं का लाभ सीधे सभी पात्र लोगों तक पहुंच रहा है। संसाधनों का वितरण निष्पक्ष रूप से किया जा रहा है। किसी भी व्यक्ति की सामाजिक हैसियत कुछ भी हो, उसकी अवसरों तक पहुंच हो रही है।
वित्त मंत्री ने इसके जरिये यह स्पष्ट करने की कोशिश की कि शासन के इस दृष्टिकोण के कारण वह परि²श्य पूरी तरह बदल गया है जब योजनाओं का लाभ भाई-भतीजावाद की भेंट चढ़ जाता था और सामाजिक न्याय की अवधारणा को चंद जातियों तक सीमित कर दिया गया था। वित्त मंत्री ने कहा कि हम सिस्टम की उन असमानताओं का निराकरण कर रहे हैं जिसने हमारे समाज को जकड़ रखा है। हम खर्च पर ध्यान केंद्रित न करके परिणामों पर जोर देते हैं ताकि सामाजिक और आर्थिक बदलाव के लक्ष्य हासिल किए जा सकें।