डा. तसद्दुक हुसैन के निधन पर शोक सभा का आयोजन
अलीगढ़ एक्सप्रेस-
अलीगढ़, 30 जनवरीः अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय के दर्शन शास्त्र विभाग में सेवानिवृत शिक्षक डा. तसद्दुक हुसैन के निधन पर आज एक शोक सभा का आयोजन प्रगतिशील लेखक संघ अलीगढ़ इकाई जनवादी लेखक संघ एवं जनसंस्कृति मंच द्वारा कला संकाय में किया गया जिसमें उन्हें भावभीनी श्रद्धांजलि अर्पित की गई। जिसकी अध्यक्षता हिंदी विभाग के वरिष्ठ शिक्षक प्रोफेसर अब्दुल अलीम ने की।
डा. तसद्दुक हुसैन को श्रद्धांजलि अर्पित करते हुए अंग्रेजी विभाग के अध्यक्ष प्रोफेसर एम आसिम सिद्दीकी ने कहा कि उनकी जीवन यात्रा में विकलांगता कभी आड़े नहीं आई और हर कार्य को दृष्टि रखने वाले लोगों के समान ही सफलतापूर्वक अंजाम दिया। उन्होंने कहा कि डा. तसद्दुक हुसैन हम सबके लिए प्रेरणास्रोत थे और रचनात्मक कार्यों के लिए सदैव प्रोत्साहित करते रहते थे। प्रो. आसिम ने कहा कि सेवानिवृति के बाद भी वह शैक्षणिक कार्यों से जुड़े रहे और सहित्य व शायरी में उनकी दिलचस्पी अंतिम समय तक बरकरार रहीं। उन्होंने बताया कि मशहूर हिन्दी फिल्म में अभिनेता नसीर द्वारा निभाई गई भूमिका भी प्रो. तसद्दुक के जीवन से कहीं न कहीं प्रभावित थी।
हिन्दी विभाग के अजय बिसारिया ने कहा कि वह एक जिंदादिल इंसान थे और हमेशा दूसरों को हंसाते रहते थे। उन्होंने न तो कभी छड़ी हाथ में ली और न ही काला चश्मा लगाया और अपने तरीके से जिंदगी को जिया। उन्होंने कहा कि डा. तसददुक ने हमेशा अपनी बात को बेबाकी से रखा और वर्तमान में इस प्रकार का अलीग देखना मुश्किल है।
हिन्दी विभाग के प्रोफेसर कमलानंद झा ने कहा कि डा. तसद्दुक हुसैन दृष्टिबाधित नहीं थे बल्कि वह आंतरिक पैनी दृष्टि रखते थे। उनकी हर बात में स्पष्टता थी। ऐसे बड़े विद्वानों से यह संसार खाली होता जा रहा है। उन्होंने कहा कि उनके जीवन से सभी को प्रेरणा लेनी चाहिए।
हिन्दी विभाग के अध्यक्ष प्रोफेसर एम आशिक अली ने कहा कि डा. तसद्दुक हुसैन का व्यक्तित्व संघर्षशील था और न केवल वाजिब हक के लिए लड़े बल्कि उसको हासिल भी किया। प्रो. अली ने कहा कि डा. तसद्दुक को शिक्षा के साथ संगीत में भी गहरी रूचि थी और उनका संबंध आगरा व अतरौली घरानों से रहा। प्रो. अली ने कहा कि उनके व्यक्तित्व के अनेक पहलू सभी को आगे बढ़ने के लिए प्रेरित करते हैं।
शोक सभा की अध्यक्षता करते हुए प्रो. अब्दुल अलीम ने कहा कि डा. तसद्दुक हुसैन से जुड़े संस्मरणों को एक स्मृतिग्रंथ के रूप में प्रकाशित किया जाना चाहिए ताकि उनकी यादों को कलमबंद किया जा सके। उन्होंने कहा कि डा. तसद्दुक हुसैन ने समाज को दिखाया कि कैसे एक दृष्टिबाधित व्यक्ति शैक्षणिक, सामाजिक व साहित्य में अपना योगदान दे सकता है।
अंत में उपस्थितजनों ने दो मिनट का मौन धारण कर दिवंगत आत्मा की शांति और शोक संतृप्त परिवार को धैर्य प्रदान करने की प्रार्थना की गई।